Guru Poornima Message 2024
A Guru is not just a gift from God or a protector. The concept of 'Guru' transcends mere divine favor or protection, symbolizing a guiding light which helps us to shed our shortcomings (or to get rid of sins) and cultivate virtues. The term ‘Guru’ embodies profound human values that demand immense sacrifice, patience, empathy, and steadfastness from the devotee or disciple. It is a lifelong commitment, not just to the Guru who embodies these values, but also to uphold the virtues including devotion and faith unwaveringly under all circumstances.
We celebrate Guru Poornima Day by worshiping and singing the name of the Guru. However, the true essence of spiritual practice lies in serving others, bringing happiness to those around us, and helping the poor and destitute, in the name of the Guru. Rendering service to the deprived, bringing a smile to the suffering souls, and also providing support in the name of Guru is the quintessence of the Guru tradition (parampara). We have to realize that there are innumerable individuals who are much more unhappy and needy and who suffer more than we do. The Sadguru, through his compassion, kindles the light of empathy within us, thereby, inspiring us to go the extra mile to help those who require it, whether they ask for it or not.
Let us resolve to help such people as Shri Sai Baba of Shirdi did throughout His life. While celebrating Guru Poornima Day with much fanfare and joyfulness, we should try to emulate Sai Baba's selfless service with compassion.
Jai Shri Sai!
Dr C. B. Satpathy
Gurugram
गुरु पूर्णिमा संदेश 2024
‘गुरु’ ईश्वर की ओर से मिला केवल एक उपहार या संरक्षक नहीं है। ’गुरु’ की अवधारणा मात्र ईश्वरीय कृपा अथवा संरक्षण प्रदान करने से परे एक मार्गदर्शक प्रकाश का प्रतीक है, जिसमें कि गुरु हमें अपनी कमियों को दूर करने (या पापों से मुक्त होने) और सद्गुणों का विकास करने में हमारी सहायता करते हैं। ’गुरु’ शब्द परम मानव मूल्यों का प्रतीक है, जो कि भक्त या शिष्य से अत्यधिक त्याग, धैर्य, समवेदना और दृढ़ निष्ठा की अपेक्षा करता है। यह न केवल उन गुरु के प्रति आजीवन प्रतिबद्धता है - जो कि इन मूल्यों के साकार रूप हैं, अपितु सभी परिस्थितियों में उनके प्रति दृढ़तापूर्वक भक्ति और विश्वास सहित सद्गुणों को बनाए रखना भी है।
हम ‘गुरु पूर्णिमा दिवस’ को गुरु की पूजा और उनके नाम का गायन करके मनाते हैं। हालाँकि, आध्यात्मिक साधना का असली सार गुरु के नाम से दूसरों की सेवा करना, अपने आस-पास के लोगों के जीवन में खुशियाँ लाना और गरीबों एवं बेसहारा लोगों की सहायता करना है। गुरु के नाम से वंचितों की सेवा करना, यंत्रणा-ग्रस्त आत्माओं के चेहरे पर मुस्कान लाना और उन्हें सहायता प्रदान करना, गुरु-परंपरा का मर्म है। हमें यह समझना होगा कि ऐसे असंख्य व्यक्ति हैं, जो हमसे कहीं अधिक दुखी और ज़रूरतमंद हैं तथा हमसे भी कहीं अधिक गंभीर यातनाएँ भोग रहे हैं। सद्गुरु अपनी करुणा के माध्यम से हमारे भीतर समवेदना की ज्योत जलाते हैं, जिससे हमें उन लोगों की सहायता करने के लिए अतिरिक्त प्रयास करने की प्रेरणा मिलती है, जिन्हें इसकी आवश्यकता है, चाहे वे सहायता माँगंे या ना माँगंे। आइए, हम ऐसे लोगों की सहायता करने का संकल्प लें, जैसा कि शिरडी के श्री साईं बाबा ने अपने जीवन भर किया। ‘गुरु पूर्णिमा दिवस’ को बहुत धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाते हुए, हमें श्री साईं बाबा की करुणा सहित निस्वार्थ सेवा का अनुसरण करने का प्रयास करना चाहिए।
जय श्री साईं!
डॉ. सी.बी. सतपथी, गुरुग्राम
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